राजनीति एक सेवा का माध्यम है ऐसा हम सभी लोग पढ़ते हैं सुनते हैं और कुछ हद तक समझते भी है,कि हां सेवा करने के लिए राजनीति में सक्रिय होना बहुत जरूरी है। कुछ सेवा करने वाले सामाजिक लोग तो सामाजिक कार्य ही इसी वजह से करते हैं कि उनको कल को राजनीति के बाजार में अपनी एक दुकान खोलनी है।
राजनीति के व्यापार में बहुत सारे शॉपिंग कॉन्प्लेक्स हैं छोटी दुकानें हैं बड़े मैन्युफैक्चरिंग हब भी हैं।जहां पर विचारधारा के अनुसार, अपने फायदे के अनुसार तथाकथित राजनेताओं को तैयार किया जाता है।लोगों के मन को समझने के लिए वैसे ही योजना बनाई जाती है जैसे कि अन्य कंपनियां अपने नए प्रोडक्ट को बाजार में लाने के लिए पहले से ही बाजार का अध्ययन करते हैं।
भारत में प्रमुख राजनीतिक कंपनियां है भारतीय जनता पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस,वामपंथी दल कुछ प्रमुख क्षेत्रीय दल और इनके सहयोगी संगठन इनकी दुकानों की श्रंखला है।वह बिल्कुल वैसे ही है जैसे कि किसी भी बड़ी कंपनी की होती है एक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी मे होलसेलर फिर रिटेलर बिल्कुल वैसे ही होता है केंद्रीय राजनीति,राज्य की राजनीति फिर नगरपालिका की राजनीति,नगर पंचायत और ग्राम पंचायत की राजनीति। जहां पर इन लोगों की होती हैं अपनी राजनीति की दुकान। राजनीति की दुकानों पर उनके लोगों का वर्चस्व होता है और अपनी कमाई के लिए भरपूर इस्तेमाल करते हैं।
अब बात आती है राजनीतिक व्यापार से देश की आम जनता को क्या फायदा होता है?देश की आम जनता को उतना ही फायदा होता है जितना कि हमें अपनी मनपसंद कंपनी के सामान को लेने से होता है।हम किसी भी कंपनी का सामान अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार लेते हैं उसी तरह से हम जिस भी राजनीतिक कंपनी को देश चलाने के लिए चुनते हैं हमको भी वैसा ही फायदा होता है।
हर राजनीतिक कंपनी चुनाव में अपना विचार बेचने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाती हैं।
आज आजादी के इतने सालों बाद बहुत सारी राजनीतिक कंपनियां एक परिवार की संपत्ति बन चुकी है।अब बात आती है कि हमे देश चलाने के लिए कौन सी कंपनी चाहिए?मेरी नजर में इस समय देश चलाने के लिए सबसे मुफीद राजनीतिक कंपनी जो है वह भारतीय जनता पार्टी है,क्योंकि इस कंपनी मैं अभी भी आम लोगों के लिए कुछ गुंजाइश है कि वह इस राजनीतिक कंपनी में जाकर देश को आगे बढ़ाने में सहयोग दे सकते हैं।बाकी कंपनियों में तो उच्च पदों पर उनके परिवार की पीढ़ी दर पीढ़ी आने वाले नए सदस्य विराजमान रहेंगे।
आज के वक्त में भारतीय राजनीति का पूर्णतया बाजारीकरण हो चुका है।यह देश के लिए दुखद है क्योंकि आज के वक्त में हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधि जो इन कंपनियों के नुमाइंदे होते हैं।हमें इन कंपनी के नुमाइंदों में से ही किसी एक को चुन कर अपने लिए संसद भेजना है और इसकी कोई गारंटी नहीं है कि यह कंपनियां हमारे साथ जो वादा करेगी वह वादा पूरा ना होने पर हम कौन से न्यायालय में जाकर कौन से उपभोक्ता फोरम में जाकर इनके खिलाफ वाद दाखिल करके न्याय प्राप्त कर सकेंगे। ऐसी कोई व्यवस्था हो कि राजनीति कंपनियों का घोषणा पत्र पूरा ना होने पर उनके खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज किया जा सके।
इसलिए हमेशा हमें याद याद रखना है कि हम जब भी किसी राजनीतिक कंपनी के नुमाइंदे को चुने तो उस प्रोडक्ट की जांच परख करके तभी उसको हम संसद भेजें। इन राजनीतिक कंपनियों को चलाने में परोक्ष रूप से तमाम व्यावसायिक कंपनियों का हाथ होता है जो कि अपने लाभ के अनुसार किसी कंपनी को प्रमोट करते हैं और किसी कंपनी को नीचे लाते हैं।